Negative Attitude

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Thursday, August 20, 2015

बिहार चुनाव और बीमारू राजनीती

अगर सियासी पार्टियों के पास प्रत्यायक के तौर पर बोलने/दिखाने के लिए कुछ भी नहीं हो तो इनके लिए राजनैतिक रिश्वत और व्यक्तिगत आक्रमण ही चुनावी सफलता का मुख्य रास्ता रह जाता है और बिहार के चुनावी दंगल में केंद्र की सत्तासीन पार्टी चुनाव के दरम्यान सपने बेचने या अल्पकालिक भावनात्मक वशीकरण करने के लिए यहि कर भी रही है...विशेष पैकेज चुनाव में लुटाने वाली लॉलीपॉप है और विशेष राज्य का दर्जा जरूरत को संवैधानिक स्वीकार्यता प्रदान करना है...जब केंद्र सरकार यह समझती है की बिहार के विकास के लिए बिहार को विशेष सहायता की जरुरत है तो इसे चुनावी घोषणा में जगह देने के वजाए संवैधानिक स्वीकार्यता क्यों नहीं दे रही है ?

69 वर्ष पुराने इस लोकतंत्र में अनगिनत चुनावी रैलियां हो चुकी है और अगर इसमें किये वादो का लेखा जोखा निकाले तो आप समझ जाएंगे की वादे है जो सत्ता की लालसा में बस कर दिए जाते है ताकि चुनाव में इसका त्वरित परिणाम मिल जाए... बिलकुल 2 मिनट्स नूडल्स की तरह... जनता है कहा याद रखेगी और अगर कोई इस मुद्दे को बाद में उठाया तो भारत से बाहर कोई मेगा शो कर गुल्लक में से कोई नया सिक्का भीड़ में उछाल देंगे...आम आदमी जो उपाय नवजात शिशु को फुसलाने के लिए करता है ठीक वही उपाय ये सियासी पार्टियां रैलियों और चुनावी घोषणाओं को सुनकर मत बनाने वाली जनता को फुसलाने के लिए अपनाते है.....इनको पता है की कुछ दिनों के लिए मूल मुद्दो पर से ध्यान भटकाने के लिए यह संजीवनी है और इस गुल्लक वाले सियासी टोटके का परिणाम आपके सामने है.... अभी अभी प्रधानमंत्रीजी की दुबई में संपन्न हुई मेगा शो के बाद #ललितगेट #व्यापम घोटाला मीडिया से तुरंत गायब हो गया....गायब हो गया की नहीं!....गायब हो गया की नहीं! :).. :)

हमारे देश की सभी सियासी संस्थायें यह अच्छी तरह से जानती है की इनके द्वारा चुनाव में किये गए वादों की न कोई संवैधानिक जवाबदेही होती है और न ही इन वादो की निगरानी के लिए कोई संवैधानिक संस्था है जो इनसे सत्तासीन होने के बाद इनके वादों के अनुपालन पर हिसाब मांग सके.

संवैधानिक तौर पर कोई राज्य सरकार अपनी जरूरतों को केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर विशेष ध्यान देने की आग्रह करती है तो संसदीय भाषा में मांग करना समझा जाता है लेकिन शब्द का यही स्वरुप अगर सत्तासीन होने के अहंकार और सत्ता पाने की लालसा का चोला पहन ले तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनकल्याण की जरूरतें एक दूसरे पर व्यक्तिगत आक्रमण और औकात दिखाने का हथियार बन जाता है.बीमारू राज्य और इसके विकास के लिए मांगने और देने की राजनीति पर भारत नाट्यम करने वाले इन राजनीतिज्ञों को ये मालुम होनी चाहिए की बोली लगाकर पैकेज की घोषणा कभी स्पेशल नहीं होगी ...देश के मुखिया द्वारा अपने ही एक राज्य को बीमारू होने का प्रमाण पत्र देना वहाँ की जनता और उस राज्य की प्रतिष्ठा को नापसन्द करना है...मुझे माननीय प्रधानमंत्रीजी के बिहार के चुनावी भाषण का एक ही उद्देश्य मालूम पड़ता है की चरणवद्ध तरीके से व्यक्तिगत आक्रमण और बीमारू राज्य जैसी तथ्यविहीन नकारात्मकता को सकारात्मकता के मुख्य पृष्ठ के जरिये चुनावी नीलामी में सत्ता के लिए पैकेज की शक्ल में बिहार और बिहार की जनता की कीमत तय करना है...

अगर कोई राज्य देश की उन्नति में सम्मिलित होने के लिए विशेष दर्जे की मांग करता तो बीमारू राज्य कहलाता है...हमारी केंद्र सरकार विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और उदारीकरण के विपणन के लिए इन्वेस्टर्स सम्मेलन या विदेशी पूंजीपतियों की जो मीटिंग्स करती है वो क्या इस बात का घोतक है की हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनी उन्नति के लिए आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में असक्षम है...बीमारू हैं ??

अगर अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार हमारा भारत विकासशील है तो इसका मतलब या हुआ की हमारे देश का समस्त भू-भाग या राज्य विकासोन्मुख है...और अगर कोई राज्य बीमारू या कुपोषण का शिकार है तो देश की तमाम सियासी पार्टियाँ अपनी सभी चुनावी रैलियों को सुनें एवं उन वादो के अनुपालन का विश्लेषण करे...बीमारू या कुपोषण का मूल कारण ज्ञात हो जाएगा!!

हाँ एक बात और...अगली बार जब सत्तासीन पार्टी का कोई घोटाला उजागर होगा तो ये देखना बहुत दिलचस्प होगा की माननीय प्रधानमंत्रीजी स्वगुणगान और सरकार की उपलब्धियों को बखान करने के लिए कौन सी देश की यात्रा पर जाते है या फिर अपने गुल्लक में से टोटके वाला सिक्का कहाँ और किस रूप में उछालते है..!

Friday, August 14, 2015

आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!



आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!






'गटारी' सेलिब्रेशन_महाराष्ट्र


गटा गट मारी
आज आमची गटारी
आज अमावस्या उदया पासुन तपस्या
चला गटा गट मारी
आज आमची गटारी
मटन चिकन ची तैयारी
आज पासुन डेढ़ महीना होणार भारी
पियक्कडा चा श्रावणा मध्ये सुखाड़ी
चला गटा गट मारी
आज आमची गटारी
हो चाहे छुटटी आणि खर्ची ची मारा मारी
वार्षिक गटारी उत्सवा ची वारी
चला गटा गट मारी
आज आमची गटारी..:)..:)

Thursday, August 13, 2015

हैप्पी साइनी डाई

लोकतंत्र में सत्तासीन पार्टी के कुछ अच्छे कार्यो को विपक्षी पार्टी द्धारा संवैधानिक तौर पर स्वीकार नहीं  करने की परंपरा उनकी विवेकपूर्ण राजनैतिक दूरदर्शिता होती है ताकि अगर भविष्य में उनकी सरकार सत्तासीन होती है तो उनके लिए बना-बनाया कुछ कार्य हो जिसको तत्क्षण लागु कर उपलब्धियाँ अपने नाम किया जा सके. अब तक आप समझ गए होंगे की मैं किसकी बात कर रहा हुँ... जी हाँ मैं बात कर रहा हुँ अच्छे दिन के वादे के साथ सत्तासीन हुई नयी सरकार के दौर में बहुचर्चित GST bill (जीएसटी) गुड्‌स एंड सर्विसेज टैक्स बिल की. इस बिल को आजादी के बाद सबसे बड़ा टैक्स सुधार कदम कहा जा रहा है क्योकि जीएसटी बिल के जरिये कई प्रकार के टैक्स को सिर्फ जीएसटी के रूप में एकीकरण करना है। 2011 में UPA के कार्यकाल में भी यह बिल पेश किया गया था लेकिन इसे विपक्ष की संबैधानिक स्वीकार्यता नहीं मिली और यह बिल संसद के बिल में कैद हो गया था. आज जब बाहर निकला तो संसद के लोगजाम और इसके कारण सरकारी पैसे की बर्बादी पर विपक्षी पार्टियों को हाय हाय करने वाले देश के शुभचिंतको को क्या 2011 में संसद के लोगजाम में हुए सरकारी पैसे की बर्बादी का इल्म नहीं था? अगर 2011 का संसद लोगजाम से जनता के पैसे की बर्बादी नहीं हुई थी तो आज किस थ्योरी के अनुसार संसद लोगजाम से जनता के पैसे की बर्बादी हो रही है? हमारे देश में राजनैतिक अपव्यय के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है और अगर अपव्यय को लोग बोझ बोलने लगेंगे तो इतना सारे टैक्स है जिसमे मात्र कुछ प्रतिशत बढ़ा देने से संसदीय आकस्मिकता की भरपाई हो जायेगी.वैसे इस संसदीय आकस्मिकता को व्यवस्थित कर संसदीय कार्य आकस्मिकता फण्ड बना दिया जाना चाहिए और इसका मुखिया संसदीय कार्य मंत्रालय हो जिससे की जनता की बदहाली और बर्बादी पर जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी हावी न हो सके.नहीं तो इस बहस में दो मुद्दो में एक का असामयिक राजनैतिक क्रियाकर्म हो जाता है. लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष तानाशाही सोच को नियंत्रित करने की प्रणाली के तौर देखा जाता है लेकिन आज के दौर में यह महज अपने आप को ऐतिहासिक बनाकर महान बनने की प्रक्रिया बन चुकी है.जो बिल नाम रौशन करने वाला हो उसको सदन में पलटकर अपने लिए प्रतीक्षा सूचि में सुरक्षित रख लो और जो बिल विपणन के लायक नहीं है या जिसका ढिंढोरा नहीं पीटा जा सकता उसको हरी झंडी दे दो.दरअसल इन सारे कुरितियों के लिए सत्ता परिवर्तन के मूल मायने और लॉली पॉप जैसी क्वीक सर्विस वाली राजनैतिक घोषणा पत्र और राजनैतिक रैलियां जिम्मेदार है जिसके झांसे में हमारे देश की आधी आबादी जो गरीबी के आधार कार्ड और लगभग २५-३० % अशिक्षित सर्व शिक्षा अभियान के मोहताज जनता आ जाती है. सत्तासीन होने की यही आतुरता..यही खक्खन सत्ता पक्ष और विपक्ष की परिभाषा और जिम्मेदारी को अनुपयोगी,स्वार्थी एवं पक्षपातपूर्ण बनाती है.

हम जनता ही जिम्मेदार है जो द्धेष से भरे भावनात्मक जुमले और रातो रात जिंदगी बदलने वाली वादों को अपने मानस पटल पर किसी धर्मग्रन्थ से ज्यादा तबज्जो दे इनके झांसे में आ जाते है और फिर इन्ही झांसों की रीब्रांडिंग और रीपैकेजिंग करने की इनकी जद्दोजहद से संसदीय विकृतियां उत्पन्न हो जाती है और बाद में संसद कितना कार्यशील रहा और अगर नहीं रहा तो इससे पैसे की बर्बादी की एकाउंटिंग शुरू हो जाती है. वैसे हमारे देश में जनता के पैसे की बर्बादी को लेकर कोई सम्वेदनशीलता या कोई जवाबदेही तय करने की प्रणाली है क्या जिसके जरिये ये सुनिश्चित किया जाए की संसद चले और नहीं तो इसके लिए दोषी को दण्डित किया जा सके. हाँ चुकी ये लोकतंत्र है तो इसके बारे में हम तमाम लोग इसको देशहित से जुड़ा मुद्दा मानकर कई दिन तक वयानबाजी और टेलीविज़न डिबेट का गवाह जरूर बनते है और संसद स्थगित तो सारी राष्ट्र-भक्ति,सारे गीले शिकवे और मीडिया बहस भी स्थगित।


वैसे अगली बार अगर सत्ताधारी पार्टी के किसी मंत्री के ऊपर ललितशास्त्र जैसी कोई इमान्दारीयुक्त भ्रस्टाचार का आऱोप लगे तो इनके संसद में यही वयान होंगे की छुट्टी पर जाइये और एकांत में ब्रिटिश राज का इतिहास पढ़िए और उसके बाद अपने बुजुर्गो से पूछियेगा की अंग्रेज़ो को कोहिनूर क्यों चुराने दिए...उत्तर मिल जाए फिर हमें दोषी ठहराना...हमने नूर-ए-आईपीएल को मानवीय आधार पर चुराया है...नूर-ए-आईपीएल कोहिनूर से ज्यादा कीमती तो नहीं है न...!!!