Negative Attitude

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Wednesday, June 12, 2013

बाँट चुट खाए गंगा नहाए

आज के दौर में राजनितिक गठबंधन का मतलब लिव इन रिलेशनशिप जैसा है जिसमे दिनचर्या  पति पत्नी जैसा होता है परन्तु कानून अभी भी पेशो पेश में है की इस रिलेशनशिप को पति पत्नी माने या नहीं? केंद्र और राज्य की राजनीती की संगीत की धुन सदैब अलग अलग होती है और अगर इसमें मनभेद हो जाए तो राजनितिक केन्द्रविंदु उतनी प्रभावित नहीं होती लेकिन अगर मतभेद हो जाए तो दूरियां बनाने से अच्छा कोई मार्ग नहीं हो सकता। हर राज्य की अलग अलग समस्याएं होती है और इसी आधार पर राजनीती की दिशा और दशा भी तय होनी चाहिए। और अगर आपमें आत्मविश्वास है की जनता आपके साथ है तो इतनी संवाद की क्या आवश्यकता है? चुनाव का इंतज़ार करें...जनता आपकी ओर से संवाद करेगी।

गठबंधन का मतलब सर्वजन- हिताय:सर्व- जन सुखाय बिलकुल नहीं माना जाना चाहिए वल्कि इसका मतलब होता है बाँट चुट खाए गंगा नहाए। केंद्र और
राज्य की राजनीती में गठबंधन कमजोर बहुमत और फिर अपनी वजूद बरक़रार रखने के लिहाज़ से अपनी पार्टी को SALE पर लगाने के अतिरिक्त और कोई दूसरा अर्थ नहीं निकलता। भारतीय राजनीती में गठबंधन का सूत्र संवैधानिक संकट है जिसमें शामिल प्रत्येक पार्टी अपने आप को प्रजातंत्र के प्रति कम जिम्मेदार मानने लगती है जो जनता के वोट और पांच वर्षीय संसदीय प्रणाली में मान्यताप्राप्त छलावा है। गठबंधन की राजनीती जब तक चलेगी तब तक बाँट चुट खाए गंगा नहाए भी चलता रहेगा। राष्ट्रीय पार्टी राष्ट्रीय हैसियत से चुनाव में उतरे और क्षेत्रीय पार्टी क्षेत्रीय हैसियत से चुनाव में उतरे तभी जनता समझ पाएगी की राष्ट्रीय हित के लिए किसको जिम्मेदार माना जाए और क्षेत्रीय हित के लिए किसको जिम्मेदार माना जाए? अभी का हाल ऐसा है की गठबंधन यानी व्हिस्की में बियर का कॉकटेल। हैंगओवर होने पर आप समझ ही न पाए की डिहाइड्रेशन हुआ तो किसकी वजह से बियर से या व्हिस्की से या फिर दोनों से?

मल्टी टियर डेमोक्रेटिक सिस्टम में प्रयेक सिस्टम की जिम्मेदारी की अनुसार से ही जनता को मतदान करनी चाहिए मतलब राज्य के लिए राज्य के अनुसार और केंद्र के लिए केंद्र के अनुसार और तभी आप इस व्यवस्था
से कुछ उम्मीद भी कर सकते है और दूसरी तरफ एक मतदाता प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का छुपा रुस्तम मालिक होता है और आपके मतदान के नजरिये में परिवर्तन से ही केंद्र,राज्य और फिर गठबंधन जैसे राजनितिक फोर्मुले को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होगा। नहीं तो आप यही सोचते रहेंगे की हैंगओवर हुआ किस वजह से?

जहाँ तक नितीश कुमार की बात है,एक बात तो माननी पड़ेगी की जो प्रजातंत्र पिछले 20 -25 वर्ष में बिहार के लिए कुछ कर नहीं पाया वो कम से कम नितीश कुमार की सरकार ने कर दिखाया है,उनके रिश्ते किससे अच्छे है या उनकी विचारधारा किससे नहीं मिलती ये एक पार्टी और उसके नेतृत्व का आतंरिक मुआमला होनी चाहिए और जनता के लिए तो सिर्फ राजनीतिज्ञों की जनहित से जुडी गतिविधियों से ही मतलब है। वर्ना फिर आप यही सोचेंगे की हैंगओवर हुआ किस वजह से?

अंत में राजनितिक गठबंधन के लिए एक गीत तो बनता है मित्रो और इसी बहाने आप भी इस गीत को गुनगुना
इस बदलते ग़ज़लनुमा मौसम का आनंद उठायें...

थोड़ी थोड़ी गुजरे पकड़ कभी ताजा सी हवाएं
सटे सटे से ये रिश्ते अपनी बांह को फैलाएं
मेरा मन तो बस गुनगुनाना चाहें
उसका मन,खुलके गीत गाना चाहें
है जिद्दी ये भी बड़ी मजबूरियाँ भी
दूरियां भी है ज़रूरी,भी है ज़रूरी
ज़रूरी है ये दूरियां...:)

Monday, June 10, 2013

सट्टा और सत्ता

सट्टा और सत्ता...जरा गौर से इन शब्दों को समझने की कोशिश करें तो आपको प्रतीत होगा की जिसकी जुबान में थोड़ी तुतलाहट होगी उसके लिए सट्टा और सत्ता के उचारण में कोई ख़ास अंतर नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में जहाँ लोगो को मताधिकार का प्रयोग करने के लिए जागरूक करना पड़ता है और आजादी के ६५ वर्ष बाद आज भी 74% शिक्षित भारतीय में से औसतन 60 % ही मतदान करते है। लेकिन बात जब क्रिकेट की आती है तो यह हमारे देश में किसी जनसांख्यिकीय विशिष्टता की मोहताज नहीं है। भारत में लोगो को मताधिकार के प्रति संवेदनशीलता हो या न हो लेकिन क्रिकेट के सारे घटनाक्रम की जानकारी होती है।हमारे देश में क्रिकेट महज एक खेल नहीं है वल्कि सत्ता के गलियारे की वह रौशनी है जिससे राजनीतिज्ञों की सफलता की मापदंड तय की जाती है,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ते राजनितिक रिश्तो में क्षति नियंत्रण के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। 

मैं इन बातो का अपने आलेख में इसलिए जिक्र कर रहा हूँ की आज कल समूचा देश सट्टेबाजी पर चिल्ला रहा है,वह भी क्रिकेट के खेल की खेल जैसी मासूम सट्टेबाजी पर बेचारे और बहुत सीधे साधे दिखने-लगने वाले चेहरे बड़े दुर्दान्त अपराधियों और पापियों की तरह प्रस्तुत किये जा रहे हैं. राज कुंद्रा से पुलिस पूछताछ कर चुकी है और उसके बाद BCCI ने उन्हें निलंबित भी कर दिया है और अब सटोरिये इस बात पर सट्टा लगा रहे होंगे कि उसकी गिरफ्तारी होगी या नहीं! क्रिकेट में सट्टेबाजी एक गुनाह है लेकिन BCCI द्वारा अनुबंधित खिलाड़िओं की बोली लगाकर मालिकाना हक हासिल किया जा सकता है मतलब BCCI अपनी छत्रछाया में एक खिलाडी को एक से ज्यादा बार SALE में लगा सकता है तो कोई गलत बात नहीं है और यह क़ानूनी रूप से वैध भी है...हो भी क्यों न भारतीय टैक्स प्रणाली में भी तो एक ही प्रोडक्ट पर कई बार टैक्स वसूला जाता है फिर BCCI इसमें क्यों चुके? अगर अनुबंधित खिलाड़िओं को भी कई बार SALE पर लगाया जा सकता है तो फिर सट्टेबाजी कैसे एक अपराध हो सकता है?

जिस देश की पूरी अर्थव्यवस्था सट्टेबाजी के इर्द गिर्द घूम रही हो,राजनीति सट्टेबाजी की शरण में हो,समूचा धर्मतंत्र सट्टेबाजी कर रहा हो,वहां सिर्फ क्रिकेट के सट्टे पर विलाप करना सचमुच आश्चर्यचकित करता है। अर्थशास्त्र के महाराजो की बात छोड़ दीजिए, जब बड़ी-बड़ी मालदार कंपनियां ग्राहकों को अपना माल खरीदने के लिए बहलाती-फुसलाती है, अपने शेयरों में निवेश के लिए ऊंचे-ऊंचे बुर्ज खलीफा निवेशकों के आगे बनाती हैं और अर्थ विशेषज्ञ इसमें पैसा निवेश की सलाह देते नजर आते हैं, तब आदमी को किस चीज के लिए उकसाया जाता है. ये लोग भी तो वही करते हैं, जो सट्टेबाज करते हैं-आओ, यहां पैसा लगाओ और रातोरात मालामाल हो जाओ!

अब जरा सट्टा से हट सत्ता में इसका प्रभाव देखते है। किसी भी चुनाव में राजनीतिक दलों के घोषणापत्र और उनके नेतागण जो बड़े-बड़े वादे करते हैं, लोगों को मनचाहा भविष्य देने की शेरशाह शूरी मार्ग जैसी लम्बी घोषणाएं करते हैं, जनता को अपने पक्ष में लाने के लिए हजार तरह के झूठे-सच्चे प्रलोभन देते हैं, वह सब क्या है? चुनाव हो जाते हैं,सरकारें बदल जाती हैं,लेकिन जनता की स्थिति यथावत बनी रहती है- आम जनता के साथ यह ठगी सीधे-सीधे सट्टेबाजी नहीं तो और क्या है? यह सट्टेबाजी भ्रष्टाचार का एक रंगीन अधोवस्त्र है जो सिर्फ दिखाने से दीखता है और अगर दिखाया नहीं गया तो यह भ्रष्टाचार की खुबसूरती में स्क्रैच कार्ड की तरह कार्य करता है।

अगर वाकई में सट्टा और सत्ता भ्रष्टाचार का रंगीन अधोवस्त्र है तो इस पर नैतिकता या कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट को दोषी ठहराने के वजाए सट्टा को क़ानूनी रूप से व्यस्क घोषित करना होगा ताकि सट्टा सार्वजानिक अधोवस्त्र हो और इसका इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर हर खास ओ आम कर सके। क़ानूनी अमली
जामा पहनने के बाद यह अधोवस्त्र(यानी सट्टा) नैतिक भी होगा एवं सरकारी खजाने की शोभा भी बढ़ाएगा …:)

Wednesday, June 5, 2013

चंद शब्द-ऐंवे ही...जारी है!

प्रयास...प्रायः आस...शब्द बनाने वाले की सोच और समझ के पीछे कोई दैविक शक्ति जरुर होगी...हमें ऐसा लगता है पता नहीं आपको लगता है की नहीं? प्रयास करते रहने का मतलब यह नहीं की सभी व्यक्ति अपनी सोच के मुताबिक सफल हो जाएँ लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं की हम प्रयास करें ही ना...प्रयास एक मार्ग है जिस पर आप चलकर ही प्रायः आस कर सकते है। प्रयास मार्ग के जरिये ही आपके प्रायः आस की सफलता की परिभाषा और समझ बहुत मायने रखती है...आपके सोच के मुताबिक सफलता और आपकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम सफलता की समझ में ना ही आपको प्रयास मदद कर सकती है और ना ही प्रायः आस...इसका वास्तुकार आपको खुद ही बनना पड़ेगा। मनुष्य के प्रजनन प्रणाली का प्रत्येक शुक्राणु जीवन प्राप्त करने योग्य है और लाखों की तादाद में शुक्राणु जीवन प्राप्त करने की एक साथ रेस लगाते है परन्तु कुछ ही जीवन में तब्दील हो पाते है। ये प्रकृति है,विधि का विधान है की प्रयास में हर कोई सफल नहीं होता और यह भी सत्य है की सफलता का मतलब सिर्फ अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार का डायलाग ही नहीं है। अब ये मत पूछिए की दीवार का डायलाग क्या था...जानने का प्रयास कीजिये इसमें आपको सफलता जरुर मिलेगी!! चलिए बता ही देते है ..मेरे पास गाडी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है.तुम्हारे पास क्या है? अब आप इस डायलाग को पूरा करें:)

प्रयास...प्रायः आस...साथ साथ आपके लिए सफलता के क्या मायने है इसको आपको ही परिभाषित करना होगा और तभी सफलता के साथ संतुष्टि को समायोजित कर जीवन जीने की प्रक्रिया को गतिशील रखा जा सकता है। सत्य तो यह है की इस धरातल का प्रत्येक इंसान मरने के लिए ही जीता है। लोग शादी करते है मुख्यरूप से बुढ़ापे के लिए,लोग बच्चे पैदा करते है मुख्यरूप से बुढ़ापे के लिए,लोग बचत करते है मुख्यरूप से बुढ़ापे के लिए इत्यादि इत्यादि...क्यों?...ताकि उनकी मौत किसी के लिए बोझ न हो...ताकि वे शुकून से इस दुनिया से रुखसत हो सकें...

अगर मरने के लिए हम सभी जी रहे है तो मौत को इतना तवज्जो क्यों दिया जाये…वजाए इसके जीवन में सफलता के अर्थ को ऐसे परिभाषित करें की जिंदगी और मौत के बीच कोई दुरी न रह सके...

मेरे पास गाडी है, बंगला है,बैंक बैलेंस है वाली सफलता का मंत्र तो आत्म-संतुष्टि से समाज-संतुष्टि में तब्दील मानसिकता है जिसमे इसको हासिल करने की अंधी दौड़ में हर वक़्त पीछे छुट जाने का भय व्याप्त रहता है… सफलता को परिभाषित करने से पहले जीवन की जरूरतें,प्रयास और फिर प्रायः आस के समीकरण को समझना ज्यादा जरुरी है और तभी एक सफल सोच का निर्माण हो पायेगा ...सफलता तो इसके बाद आती है!!!

जीवन को क्रियाशील बनाये रखती है हमारी प्रयास...प्रायः आस...निरंतर आस ना की निराश...निराश हुए तो न जिंदगी साथ देती है और न ही मौत ???

Tuesday, June 4, 2013

चंद शब्द…ऐंवे ही

अभिनेत्री जिया खान का इतनी कम उम्र में मृत्यु को गले लगा लेना बहुत दुखदायक है और यह इस बात का घोतक है की वंशवाद से ग्रसित फिल्म उद्योग में कैरियर बनाना और इसके प्रतियोगिता में सफल होना दो अलग अलग बातें है जो योग्यता और प्रतियोगिता को हमेशा छलती रहती है और अब फिल्म जगत को ये सोचना होगा की किसी भी तरह की प्रतिभा कभी भी इस तरह अपनी आत्महत्या न करे… परवरदिगार अभिनेत्री जिया खान की आत्मा को शांति प्रदान करे…
{मित्रो...संघर्ष को अपना शत्रु न समझे और प्रयास के साथ साथ जिंदगी में अपनी बारी की प्रतीक्षा करें}..

गर टूटना होता तो कब का टूट गया होता
पर मरने की चाह टूटने नहीं देती
गर बिखरना होता तो कब का बिखर गया होता
पर मरने की राह बिखरने नहीं देती
गर डूबना होता तो कब का डूब गया होता
पर सागर पार करने को बेपरवाह,डूबने नहीं देती
गर झुकना होता तो कब का झुक गया होता
पर श्याह रात की थाह झुकने नहीं देती
जिंदगी है तो मौत है
और मौत है तो जिंदगी
बस इतनी सी बात हमें रुकने नहीं देती
गर रुकना होता तो कब का रुक गया होता
गर रुकना होता तो कब का रुक गया होता...