Negative Attitude

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Sunday, March 17, 2013

रविवासरीय

इस वित्त वर्ष में सरकार द्वारा टैक्स की सीमा में छुट तो नहीं मिली लेकिन सेक्स की उम्र सीमा में छूट जरूर मिली है। शादी की योग्यता महिलाओ के लिए 18 वर्ष ,पुरुषो के लिए 21 वर्ष और सहमती से सेक्स के लिए योग्यता 16 वर्ष? ये छूट हमारी संस्कृति में अपराध और अपराधी के बीच चाइनीज खेल सु -डोकु जैसा है। सहमती से सेक्स के लिए योग्यता 16 वर्ष महिलाओं की सुरक्षा कितना सुनिश्चित करेगा ये आने वाला वक़्त ही बतायेगा लेकिन आने वाले चुनावी मुकाबले में मुंह मिया मिट्ठू बनने के लिए ये 16 वर्ष की बाली उमर फिट है बॉस।

सरकार जो एंटी रेप कानून बनाने वाली है वो अपराध और अपराधी दोनों का एक नया चेहरा प्रस्तुत करेगा,अब तक तो अधिकांशतः पुरुष सेक्स मतभेद से जुड़े अपराध में लिप्त पाए जाते रहे है लेकिन अब इस कानून से महिलाए भी चाइनीज खेल सु -डोकु खेलते नजर आने वाले है। इंसान हमेशा निति निर्धारण की आड़ में स्थिति-निर्धारण करता आया है और फिर ये स्थिति तो मौके पे चौक लगाने जैसा है,ये नया वाला लेकिन अस्पष्ट एंटी रेप बिल सेक्स मतभेद में महिलाओं को भी अपराधी बना दे तो इसमें कोई अश्चर्य नहीं होनी चाहिए। नव विभाजित इंडिया और भारत के समाज में अगर सेक्स मतभेद के प्रति सोच अगर यथावत रही तो आप कितनी भी कानून ले आइये कुछ परिवर्तित होने वाला नहीं है।

आइये अब थोडा दुरे विषय पे चर्चा करते है। जैसा की आप सभी देखें ही होंगे ,दिल्ली की रामलीला मैदान आज एक बार फिर लोगो के हुजूम के साथ अस्त व्यस्त दिखा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में  विशेष राज्य का दर्जा की मांग  के लिए अधिकार रैली किया। रैली के राजनितिक मायने क्या होंगे और इस रैली से विशेष राज्य का दर्जा की मांग का कितना असर होगा ये तो आने वाले लोकसभा चुनाव की ज्यामिति पर निर्भर होगी। लेकिन श्री नितीश कुमार की आज की भाषण से ऐसा लगा की उनकी ये मांग तत्कालीन स्थितियों को भुनाने के लिए नहीं है। पहली बार बिहार के किसी नेता ने सांख्यिकी के गहन अध्यन के साथ और उसका आधार बनाकर अपनी मांग रख रहा है। उनके संबोधन के मुताबिक बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। विकास के लिए प्रति व्यक्ति खर्च राष्ट्रीय औसत से आधा है। मानवीय विकास सूचकांक में भी बिहार पीछे है।  विकास हर इंसान का  अधिकार है। ऐसी स्थिति में बिहार के लिए केंद्र को विशेष क्यों नहीं सोचना चाहिए? एक जमाने में सत्ता बिहार से चलती थी। जी हाँ चाणक्य तो स्मृति में होंगे ही!

वैसे दोस्तों 
दुनिया भर में जहाँ भी लोकतंत्र है,सभी राजनीतिज्ञ जानते है की लोकतंत्र में आम जनता बड़ी नोट है और इसके खुल्ले कैसे करवाने है। चाहे वो खुल्ला चुनावी घोषणा पत्र के जरिये हो या फिर मीडिया पर सीधी बात नो बकवास के जरिये। पर एक बार अगर बड़ी नोट के खुल्ले हो जाये तो पैसे की क्या हश्र होती है तो ये तो हम जानते ही है। पैसेंजर ट्रेन अचानक राजधानी की गति में तब्दील हो जाती है। आज हमारे देश में संबिधान का भी हाल आम जनता जैसा ही यानी बड़ी नोट हो चला है। हमारे लोकतंत्र का हर राजनीतिज्ञ इस बड़ी नोट के खुल्ले की फिराक में लगा है,सहमती बना ले तो बड़ी नोट थोड़ी बड़ी होकर तो जरूर बच जायेगी।

साहिल की रेत पर यूँ लेहेर उठा ये दिल,सागर में उठनेवाली हर लेहेर को सलाम-सोलह बरस की बाली उम्र को सलाम।।

शुभ रात्रि..:):)


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