Negative Attitude

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Saturday, October 6, 2012

कामुक सब्सिडी

आजकल सब्सिडी के नाम पर पुरे देश में हंगामा मचा हुआ है.देश का प्रत्येक राजनीतिज्ञ सब्सिडी की सुन्दरता को अपने अपने तरीके से वयां करने में मशरूफ है.स्वतंत्रता के बाद जो भी सरकार सत्ता में आयी,सब्सिडी देती आ रही है.लेकिन सोचने बाली बात ये है की क्या सब्सिडी सच में गरीब जनता का बोझ कम कर रही है? आज तक हमारी सरकार गरीबो की परिभाषा या यूँ कहे हमारे देश की गरीबी तय नहीं कर पायी है तो फिर ये विशालकाय सब्सिडी किस मापदंड पर निर्धारित की जा जाती है.पेट्रोल,डीजल और अन्य संसाधन का दाम बढ़ाये जाने पर हर बार सरकार सब्सिडी के वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान का रोना रोती है और मूल्य वृद्धि को जायज ठहराती है.जहा तक सरकार का कहना है,पेट्रोल डीजल एवं अन्य प्रकृतिक संसाधन का लगभग 70-75% आयात करना पडता है और सरकार इन पर सब्सिडी देती है [सही है] ताकि गरीब जनता के उपर ज्यादा बोझ ना पड़े.परंतु जो आर्थिक सहायता या अनुदान सरकार गरीब जनता के नाम पर दे रही है जिसे सरकार सब्सिडी कहती है क्या उसका लाभ सचमुच मे गरीबो को ही मिल रहा है ? क्या संपन्न-अमीर लोग गरीब जनता के नाम पर सब्सिडी का लाभ नही ले रहे ? 

आज हमारे देश मे सवा अरब की जनता मे लगभग 35 से 45 करोड़ लोग संपन्न हैं,क्या इन्हे सब्सिडी जायज है ? सरकार अगर गरीबी नही तय कर सकती तो अमीरी तो तय कर सकती है? सरकारी आकड़ो के अनुसार सब्सिडी के ऊपर वर्ष 2006-07 में लगभग 57,125 करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2011 -12 यही लगभग 2.16 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गए.अब जरा सोचिये सब्सिडी के वृद्धि के साथ महंगाई थोड़ी बहुत नियंत्रित रहनी चाहिए थी परन्तु महंगाई दिन ब दिन बढती ही जा रही है.मतलब यह बात तो स्पष्ट है की सब्सिडी पे निर्भर होकर महंगाई पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता? बाजार जो कीमत तय करती है उसपर सब्सिडी कोई सार्थक प्रभाव नहीं ड़ाल सकती है.तो फिर प्रश्न यह उठता है की इसका हल क्या है? हमारी राय में इसका हल है सब्सिडी की जरूरतों का वर्गीकरण करना जो कोई भी सरकार आज तक स्वीकार नहीं कर पायी है क्योंकी किसी ने सच ही कहा था,किसी झूठ को जोर से और बार-बार बोलो तो वह सत्य लगने लगता है.सब्सिडी भी भारतीय राजनीती में जनता के लिए वैसा ही सत्य लगने वाला झूठ है या यूँ कहे की सब्सिडी भारतीय राजनीती की रखैल है जो जब चाहे अपने लाभ के इस्तेमाल कर सकता है? भारतीय लोकतंत्र में राजनीती अगर व्यवसाय हो गया है तो सब्सिडी भारतीय राजनीती का प्रोडक्ट है और देश की हर राजनितिक पार्टियाँ सब्सिडी को अपने लाभ के लिए जनता के समक्ष अच्छी तरह से इसका विपणन करती आ रही है.चुनावी घोषणा पत्र क्या है,सब्सिडी के बदौलत ही तो जनता को रिझाये जाते है? कोई लैपटॉप देने का वायदा,कोई अनाधिकृत जमीन को अधिकृत करने का वायदा तो कोई अल्पसंख्यको के विकास के लिए अतिरिक्त पॅकेज का वायदा इत्यादि इत्यादि...देश की हर पार्टी अपने अपने प्रतियोगियों की तुलना में रचनात्मक चुनावी घोषणा पत्र के जरिये जनता को लुभाती है..कैसे?...अपनी वही रखैल(सब्सिडी) के बदौलत....कोई भी पार्टी आज तक राजकीय कोष का न्यायसंगत इस्तेमाल नहीं कर पायी है और न ही करने का इरादा रखती है...इस देश में राजनीती से जुडा हर सख्श  गरीब आदमी के नाम पर सब्सिडी का विपणन करने में लगा है...अगर सब्सिडी इतनी कारगर होती तो गरीबो की तादाद कम होनी चाहिए थी लेकिन संपन्न लोगो के मुकाबले गरीबों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती चली जा रही है? आजादी के ६५ वर्ष बाद भी हर राजनितिक पार्टी जन वितरण प्रणाली को दुरुश्त करने में नाकाम रही है,इस जन वितरण प्रणाली के जरिये गरीबों को बुनियादी आवश्यकताएँ मुहैया करने के नाम पर सब्सिडी से हजारो करोड़ रुपये की हर साल लूट होती है लेकिन गरीबों को क्या मिलता है...सिर्फ और सिर्फ ठेंगा??? 

हमारी राय में सब्सिडी की परिकल्पना को पुनः परिभाषित करने की जरूरत है? सब्सिडी को जरूरतों के मुताबिक वर्गीकरण करना होगा? नहीं तो सरकार सब्सिडी के नाम पर जो टैक्स की लूट मचा रखी है वो कभी बंद नहीं होगी...अगर तिरोभूत टैक्स देखे तो हमारे देश में इसका मकड़ जाल है जो सरकार सिर्फ इस तर्क पे वसूलती है की हमारे पास सब्सिडी का बोझ है?? निर्माता की लागत और उपभोक्ता कीमतों को पूरी तरह से बाजार को सौप दिया जाना चाहिए...बाजार को ही कीमत तय करने दे...हमारे देश में सब्सिडी जब तक रहेगी विकाशशील से विकसित कभी नहीं हो पायेंगे...सब्सिडी जब तक रहेगा राजनितिक पार्टियाँ कभी भी देशहित या जनहित के लिए अच्छा एवं रचनात्मक कार्य नहीं करेंगी...राजनीतिज्ञों को उनके भविष्य सुरक्षित करने के लिए सब्सिडी है ना...जनता के समक्ष राजनीतिज्ञ समय समय पर सब्सिडी को कामुक अंदाज में पेश एवं विपणन करती रहेंगी...गरीबों या देश की किसको पड़ी है?


सब्सिडी..हलकट जवानी


अरे! बस्ती में डेली बवाल करे..
हाए..नेताओं की नीयत हलाल करे..
आईटम बना के रख ले...
चखना बना के चख ले...
मीठा यह नमकीन पानी..
यह हलकट जवानी,यह हलकट जवानी...

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