Negative Attitude

Negative Attitude
Negative Attitude

Thursday, September 6, 2012

वक़्त हर जख्म को मिटा देती है,क्या यह सत्य है?

लोग अक्सर कहा करते है की वक़्त हर जख्म को मिटा देती है, क्या यह सत्य है? क्यों है वक़्त पे इतना यकीं? बीते हुए यादों की कड़वाहट,पुराने जख्मों के निशां एवं छुपे एहसास खराश बनकर क्या जख्मों के टीस को पुनः जवां नहीं कर देती.ये तो मुस्कराहट है जो बीते को बीता समझ इन जख्मों से दूरियाँ बनाने की कोशिश करती है.ज़ख्मों की नाप तौल करते होंठो पे बलखाते ये मुसकुराहट,खर्च हुए साँसों की कीमत अदा कर रही होती है.
उलझनें उलझन से कह रहीं होतीं है की जख्म भले ही जख्म हों रहती तो ये साथ हैं,ख़राशों का क्या, इसके ज्वार न जाने कब आये और इन जख्मो को पुनः जख्मी कर कर लुप्त हो जाए.जख्म और ख़राशों के इस द्वन्द्व युद्ध से दहसतजुदा मुस्कराहट जीवन के कलरव के बीच मुस्कुराने के लिए परिस्थितियों की दासी हों जाती है.अच्छे दिखने की मुसकुराहट,अच्छे बनने की मुसकुराहट,मुसकुराहट के मन के विरुद्ध मुस्कराहट,मन के ज्वाला की मुसकुराहट,मुसकुराहट छिनने की मुसकुराहट,आमोद प्रमोद की मुसकुराहट,अहंकार की मुसकुराहट-बस वजहों के कैद हों कर रह जाती है मुसकुराहट या यूँ कहें खुशियाँ बिना वजह के मुस्कान नहीं बन सकती.खुशियों और मुस्कान के इन्ही वजहों की खोज में हम मनुष्य आज जीवन प्रबंधन के अध्यन में जुटे है.जीवन की उलझनों को और उलझाने लगे है.पारदर्शिता से परे उलझनों को पैतरे और कलाबाजियों से सुलझाने में लगे है.खुशियों को बेवजह खुश करने में लगे है.जख्म एवं ख़राशों की पारदर्शी कार्यशैली ही इनके टीस को विशुद्ध बनाती है ठीक इसी तरह मुसकुराहट की पारदर्शिता मुस्कुराकर ही महसूस की जा सकती है.जब कोई भी नवजात जीवन क्रियाशील होता है तब रोता है परन्तु उसके आगमन एवं क्रियाशील होने के उल्लास में हम तमाम लोग हर्षित होते है,उत्सन मनाते है.एक वक़्त ऐसा भी होता है जब रोने की दिखावटी भावाभिव्यक्ति रोते हुए नवजात जीवन को हँसा देती है.रोने और हँसने की अभियांत्रिकी बिलकुल स्पष्ट है.वजह अगर मृगतृष्णा बन जाए तो जख्म और खराशें टीस देतीं रहेंगी लेकिन एक जीवन के क्रियाशील होने की क्रिया एवं प्रतिक्रिया के विशुद्ध एवं पारदर्शी भाव खुशियों की स्वागत करती ख़ुशी पे गौर करे तो मन में ये प्रश्न बार बार उठता है की हम मुस्कुराना चाहते है या सिर्फ परिस्थितयों के आगोश में ही मुस्कुराना चाहते है क्योंकी हमारे जीवन में जख्म भी होंगी,अज्ञात खराशें भी होंगी,सोचना यह है की वजहों से लैस मुस्कुराहटों से जख्म और ख़राशों का अंतर समझना है या मुस्कुराहटें वजहों के मिजाज समझने में स्वयं सक्षम है यह मानते हुए इस उहापोह का समाधान इनके ही ऊपर छोड़ देना है.जहाँ तक जीवन प्रबंधन की सूत्र तलाशने की बात है यह वाक्य जख्म भले ही जख्म हों रहती तो ये साथ हैं,ख़राशों का क्या,इसके ज्वार न जाने कब आये और इन जख्मो को पुनः जख्मी कर कर लुप्त हो जाए जीवन प्रबंधन की गहराई समझने के लिये पर्याप्त है.मानव जीवन बिलकुल सहज है और सहजता के लिये प्रबंधन का कोई स्थान नहीं होता.जख्म तो जख्म हैं टीस तो उठेगी ही पर इसको नियंत्रित करने की एक ही औषधि है मुस्कुराना,मुस्कुराते रहना वह भी वजहों से आज़ाद होकर.So ,Smile,even if it's a sad smile,because sadder than a sad smile is the sadness of not knowing how to smile...:-)

No comments:

Post a Comment