Negative Attitude

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Thursday, September 20, 2012

सम्बन्ध विच्छेद

टीम अन्ना में अब अन्ना शब्द नहीं रहा.भ्रष्टाचार का आन्दोलन अब दो भागों में खंडित हो गया है.अन्ना अब अलग रस्ते चलेंगे वही केजरीवाल और उनकी फ़ौज अन्ना को दिल में रख अब आन्दोलन को राजनितिक मुखौटा पहना एक नयी ध्वनि और रूप में पेश करेंगे.कृष्ण और अर्जुन अलग हो जायेंगे तो फिर गीता कहाँ से रची जायेगी.धर्म और अधर्म की लड़ाई में भगवान् श्री कृष्ण को भी जीत और हार की निर्णायक प्रणाली युद्ध का ही मार्ग अख्तियार करना पड़ा था वह भी अर्जुन का सारथी बनकर.आगे रहकर टीम का नेतृत्व करना...परफेक्ट टीम वर्क.
हमारी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसद ही सर्वोच्च संस्था है,इसको दरकिनार कर सामानांतर रूप से जन जागृति का कार्य तो कर सकते है लेकिन संसद का हिस्सा बने बिना कुछ नहीं कर सकते.अन्ना हजारे जी की सोच और उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट है और हम इस विषय में कोई प्रश्न नहीं उठा रहे है किन्तु उनका राजनीती से दूर रह व्यवस्था में परिवर्तन का सिद्धांत भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली में कभी कारगर नहीं हो सकती..और अगर आप ऐसा सोचते है तो तत्कालीन व्यवस्था के समरूप एक अलग व्यवस्था बनाना होगा जो की देश के संबिधान की तौहीन होगी.किसी भी देश में दो संविधान संभव है क्या? राजनीती में परिवर्तन सिर्फ राजनीती ही कर सकती है, इसका और कोई विकल्प है ही नहीं.व्यवस्था की खामियां और उसका समाधान व्यवस्था का हिस्सा बन कर ही अच्छी तरह से समझा जा सकता है.केजरीवाल और उनकी सेना बिलकुल सही दिशा पे चलने का निर्णय लिया है और अगर अब उनकी एकता और मंशा दिग्भ्रमित नहीं हुई तो निश्चित रूप से हमारी देश की संसदीय प्रणाली उनका सहयोग करेगी और वो अपने मकसद के अनुसार देश और जनता के लिए फलदायक कार्य करने में कामयाब हो पायेंगे.
अन्ना का टीम अरविन्द केजरीवाल से सम्बन्ध विच्छेद से सबसे ज्यादा दुःख पिछले दो वर्षो में भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को मिली सकारात्मक उर्जा को हुई होगी और यह अन्ना के उत्साह के साथ साथ टीम अरविन्द केजरीवाल को भी नुकसान पहुचाने वाला है.खैर बिना कृष्ण के महाभारत संभव नहीं थी ठीक उसी तरह बिना अर्जुन के युद्ध के सिद्धांतों को व्यावहारिकता में परिणत भी संभव नहीं था.लेकिन महाभारत अब भारत हो गया है तो क्रांति का स्तर महान कैसे हो सकता.श्री कृष्ण प्रकांड विद्वान् के साथ साथ एक अलौकिक शक्ति के अवतार भी थे.योद्धा की शक्ति,गुणवत्ता और समर्पण उनसे अच्छा इस संसार में कोई भी परख नहीं सकता.लेकिन आज के परिवेश में न तो धर्म और अधर्म की विशुध्ता रह गयी है और ना ही युद्ध के रथ की सारथी और उसमें विराजमान योद्धाओं की भावनाओं की,फिर क्रांति के मशाल की आभा तो प्रभावित होगी ही.भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन अब अंदरूनी कलह से संक्रमित हो चुका है और अगर इस संक्रमण से निजात पाना है तो पहले एक ठोस मंच तैयार करना होगा ताकि लोगो को यह विश्वाश हो सके की यह सकारात्मक आन्दोलन है और तभी लोग इसे जनांदोलन का रूप दे सकेंगे.महाभारत और भगवत गीता दोनों की साख पे बट्टा लगा है और इसकी मर्यादा की हिफाजत की जिम्मेदारी अब टीम केजरीवाल को निभानी होगी वर्ना लोकतंत्र में आन्दोलन का अधिकार और इसकी परिकल्पना सिर्फ तमाशा बनकर रह जायेगी..???

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