Negative Attitude

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Tuesday, August 14, 2012

13th August 2012 - खादी भगवा समझौता

13th August 2012 (सोमवार) को काले धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ पांच दिन से रामलीला मैदान में अनशन कर रहे योगगुरु बाबा रामदेव के समर्थकों का उन्माद देखकर ऐसा लग रहा था जैसे ये आन्दोलन एक सफल आन्दोलन है और देश के उत्थान के लिए है.लोग,यहाँ तक की मीडिया भी कहने लगी की योगगुरु बाबा रामदेव ने अन्ना हजारे का आन्दोलन हाइजैक कर लिया. विपक्षी पार्टियों के गणमान्य प्रतिनिधियों का एक साथ मंच पे आना,हाथ में हाथ मिला एक साथ ग्रुप फोटो और उनके भाषण के तेवर मानो ऐसे लग रहे जैसे इस आन्दोलन को उन्होंने ने ही अपरोक्ष रूप से संगठित किया हो. अब आन्दोलन के स्वाद की राजनीती का रिवाज़ हो गया है.जो आन्दोलन जितना स्वादिष्ट विपक्षी पार्टियों का उतना ही प्यार, दुलार और समर्थन.अगर आप अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय हुए लोकसभा में लोकपाल पर हुए बहस देखे होंगे तो जरूर याद होगा की ये वही विपक्षी पार्टियाँ हैं जिन्होंने लोकपाल बिल की संकल्पना को पास ही होने नहीं दिया.जैसा भी लोकपाल था, एक बार पास हो जाता,उसका कार्यान्वयन होता. तभी तो पता चल पता की उसमें खामियां क्या है? पहले दिन से ससक्त लोकपाल..ससक्त एक शब्द है और इसको इसके उद्देश्यों के मुताबिक परिभाषित किया जा सकता है.अगर हम लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते है तो एक बार लोकपाल बिल पास कर देते और संशोधन का प्रावधान तो है ही हमारे पास.जरूरी होने पर बेहतरी के लिए समय समय पर सर्वसहमति से संशोधन करते रहते.क्या हम भूल गए है की जरूरतों के अनुसार हमारे संबिधान में समय समय में संशोधन होता आया है??? लेकिन हम लोकपाल और ससक्त लोकपाल की दूरिओं को पाटना ही नहीं चाहते पर यह प्रदर्शित करना चाहते है की लोकपाल चाहिए.इसके लिए नौटंकी तो करनी पड़ेगी-प्रजातंत्र में नौटंकी मतलब रैली/अंदोलन और क्या? हमारे देश में आन्दोलन की सफलता भीड़ से आँकी जाती है.हाँ ये बात अलग है की जनता की भीड़ और जनता का समर्थन दो अलग अलग शब्द है जैसे की भ्रष्टाचार और कला धन.2010 के बिहार विधान सभा में श्री लालू प्रसाद यादव के चुनावी रैलियों में भी जन सैलाव उमड़ा करता था लेकिन इसके परिणाम आप सब देखे ही होंगे, बिहार के शक्तिशाली राजा माने जाने वाले श्री लालू प्रसाद यादव की हालत ठीक वैसी हुई जैसी स्वतंत्रता संग्राम के वक़्त अनगिनत राजाओं और निजामों की हुई थी.भारतीय राजनीती सतरंज का खेल है, दांव/पेंच की परिपक्वता ही विजय या पराजय निर्धारित करती है.इस बार योगगुरु बाबा रामदेव की तैयारियों और परिगणना की दाद देनी होगी.सरकार के लिए संसद का मोंसून सत्र का संचालन एवं स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों एवं सफल क्रियान्वयन का दवाब - हुआ ना योगगुरु बाबा रामदेव का मौके पे चौका.वही दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का दुसरे के कंधे पे बन्दूक रख गोली चलाना लोकोक्ति का अनुसरण - बनी बनायी मंच,मानी मनाई भीड़,सजी सजाई शय्या और समां बाँधते योगगुरु बाबा रामदेव - भीड़ जुटाने में मृत हुए आत्मविश्वास वाली विपक्षी पार्टियों के लिए लाभ की रोटी सेकने और सत्ता पक्ष पे हमला करने का  इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है.योगगुरु बाबा रामदेव का तीन दिन का सांकेतिक अनशन पांच दिन तक दिल्ली को गरमाए रखा.ये काला धन का जनांदोलन नहीं वल्कि खादी का भगवा में विलय है.खादी का भगवा के साथ एक गुप्त समझौता है.एक जनांदोलन दुसरे जनांदोलन की महत्ता को कम करे वो आन्दोलन हो सकता है जनांदोलन नहीं.उद्द्देश्य का चरम तो दोनों का भ्रष्टाचार ही था.अगर विपक्षी पार्टियाँ कमजोर एवं खोखले हो तो ऐसा ही होगा.अन्ना हजारे के आन्दोलन में भीड़ कम थी इसलिए वो आन्दोलन फेल वही योगगुरु बाबा रामदेव के आन्दोलन में भीड़ तो आन्दोलन सफल.शाम होते ही जैसे सरकार ने कला धन पे संसद में बहस का एलान किया तो मीडिया ने इस न्यूज़ को ब्रेकिंग न्यूज़ का दर्जा दे न्यूज़ के पहले वाक्य में आन्दोलन के आगे झुकी सरकार और दुसरे वाक्य में संसद में काले धन पे कल बहस होगी.मैंगो मैन के मुकाबले मीडिया तो राजनितिक बारीकियां और पैतरेबाजी  समझने में निपुण है फिर उपरोक्त ब्रेकिंग न्यूज़ का क्या मतलब है.आन्दोलन की सफलता बताना या सरकार मजबूर है ये दर्शाना? अगर स्वाद और भीड़ वाली आन्दोलन की राजनीती होने लगेगी तो सरकार चाहे किसी की भी हो लोकतंत्र कभी भी लोकतंत्र की परिकल्पना के अनुसार नहीं चलेगा.पांच वर्ष की आयु वाली संसद की रुकावट बनकर रह गयी है ये जनांदोलन.हर आदमी अब प्रजातंत्र को अपने अपने मुद्दे पे चलाना चाहता है.मैंगो मैन तो सिर्फ मैंगो ही बनकर रह गया है.हमारे देश में पहले से ही बहुत सारी चुनौतियां(जैसे भूख,गरीबी,रोजगार,बिजली,शिक्षा,नक्सलवाद,जनविनाशवाद आदि ) है जिनका हल तालाशना कला धन से ज्यादा महत्वपूर्ण है.अगर जनांदोलन हो तो इनके लिए हो जिससे आम आदमी से अब मैंगो मैन पुकारी जाने वाली जनता का हित हो सके.वैसे 13th August 2012 का दिन एक ऐतिहासिक दिन था.13th August 2012 खादी भगवा समझौता/ खादी का भगवा में विलय के लिए भारतीय राजनीती के इतिहास में याद किया जायेगा.कल छेयासठ्वा स्वतंत्रता दिवस है ६६ वर्ष बुजुर्ग हो चुके स्वतंत्र भारत को ये सोचने की जरूरत है क्यों असंख्य भारतवासी अभी भी भूख,गरीबी,रोजगार जैसे जीवन की बुनियादी सुविधाओ से महरूम है?आजाद भारत आबाद भारत कब बनेगा?...Happy Independence Day..Jai Hind...

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